नजूल भूमि फ्री होल्ड नीति के टाँय- टाँय फिस्स होने के बाद सियासी हल्के में एक रहस्यमय चुप्पी,देहरादून से लेकर उधम सिंह नगर तक सियासी सूरमाओं ने सिले होंठ
रुद्रपुर।नजूल भूमि फ्री होल्ड के झूठे चुनावी वादे की असलियत सामने आने के बाद शहर के सियासी हलके में फिलहाल एक अनचाहा- सा सन्नाटा है। नजूल भूमि पर बसे लोगों की मालिकाना हक पाने की आस टूटने के बाद शहर के सियासतदारों की इस मसले पर कोई भी सार्वजनिक प्रतिक्रिया अभी तक सामने नहीं आई है। माना, कि सत्ता पक्ष का चुनावी झूठ, अब उसके नेताओं को जनता से मुंह छिपाने पर मजबूर कर रहा है, लेकिन विपक्ष के राजनेताओं की खामोशी फिलहाल समझ से परे है। मालूम होता है कि निकट भविष्य में कोई चुनाव न होने के कारण विपक्ष भी जनहित का कोई फालतू सर दर्द लेने के मूड में फिलहाल नहीं है। रही बात नजूल पर बसे लोगों की, तो कभी भी बेदखल किए जाने की आशंका के साए में उन्हें अभी काफी समय तक जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है ।वह इसलिए, क्योंकि सियासतदारों को आम लोगों की जरूरत अभी हाल- फिलहाल नहीं तो पड़ने वाली। जब चुनावी मौसम नजदीक आएगा, तो उन्हें फिर कोई नया प्रलोभन दे कर वोटो का सौदा कर लिया जाएगा। वैसे सत्ताधीशों की तिकड़म की भी दाद देनी होगी, जिन्होंने नजूल भूमि फ्री होल्ड के नाम पर भोले भाले गरीब लोगों को बड़ी ही होशियारी से बेवकूफ बनाया। पहले फ्री होल्ड के कागजात तैयार करवाने में जनता से भाग दौड़ कराकर, जिसमें उसका काफी समय, श्रम और पैसा सभी नष्ट हुआ, फ्रीहोल्ड प्रक्रिया के गतिमान होने का विश्वास दिलाया गया और बाद में फ्री होल्ड के सपने को साकार करने का झांसा देकर वोट भी हासिल कर लिए गए। देखा जाए तो नजूल भूमि फ्री होल्ड के नाम पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही समय-समय पर जनता को अच्छा खासा बेवकूफ बनाया है ,लेकिन चूंकि नजूल भूमि फ्री होल्ड करने का शिगूफा वर्ष 2009 में सबसे पहले भाजपा ने ही छोड़ा और पिछले 7 वर्षों से वह इस मसले पर जनता को लगातार झांसा भी देती आ रही है, इसलिए भाजपा का गुनाह कांग्रेस के गुनाह की अपेक्षा कहीं बड़ा है। इसके अलावा एक कड़वा सच यह भी है कि नजूल भूमि पर बसे लोगों को भूमि धरी अधिकार देने को लेकर भाजपा कभी भी संजीदा और ईमानदार नहीं रही। वह इसलिए क्योंकि, इस दिशा में अगर भाजपा तनिक भी संजीदा और ईमानदार होती, तो वह सुप्रीम कोर्ट में नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध समय रहते अपना पक्ष प्रस्तुत करती, लेकिन सरकारी वकीलों की एक बड़ी फौज की मौजूदगी के बावजूद सरकार का हाथ पैर हाथ धरे बैठे रह जाना ,उसकी नीयत पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि भाजपा सरकार द्वारा आरंभ की गई मौजूदा फ्रीहोल्ड नीति पर हाई कोर्ट का ब्रेक लगने पर ना तो सरकार को कोई अफसोस है और ना ही नजूल भूमि पर बसे लोगों से चुनाव के पहले झूठा वादा करने के लिए किसी प्रकार की शर्म। शायद यही कारण है कि नजूल भूमि फ्री होल्ड पर नैनीताल हाई कोर्ट की रोक का ताजा समाचार आने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सहित और सरकार के किसी भी मंत्री, विधायक और किसी भी छोटे-बड़े भाजपा नेता ने इस मसले पर सहानुभूति के दो शब्द भी कहने की जरूरत नहीं महसूस की। ऐसा जान पड़ता है जैसे भाजपा में अब इस मसले पर कुछ बोलने का नैतिक साहस नहीं बचा है ।और बचेगा भी कैसे? क्योंकि भाजपा सरकार के उन मंत्रियों विधायकों भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं तथा चुनाव लड़े प्रत्याशियों को, जिन्होंने नजूल भूमि पर मालिकाना हक दिलाने का झूठा वादा करके लोगों से वोट मांगे थे, उन्हें अपना वादा पूरा ना कर पाने की स्थिति में अब थोड़ी बहुत शर्म तो आएगी ही। काश ! यह शर्म प्रशासन के उन अधिकारियों कर्मचारियों को भी आती, जिन्होंने नजूल भूमि का मालिकाना हक देने के लिए मोहल्ले-मोहल्ले कैंप लगाए थे और सर्वे किया था ।