नजूल भूमि फ्री-होल्ड पर औपचारिक रोक के बाद एक्सपोज हुई
वोटो की गंदी राजनीति,सामने आया सियासतदारों का दोहरा चरित्र
रुद्रपुर। उत्तराखंड शासन के सचिव आवास, आर मीनाक्षी सुंदरम द्वारा नजूल भूमि फ्री-होल्ड पर रोक की औपचारिक पुष्टि के बाद, जहां नजूल भूमि पर भूमि धरी अधिकार पाने का सपना संजोने वाले तमाम लोगों के ख्वाब तो धूल धूसरित हुए ही हैं ,वहीं नजूल भूमि फ्री-होल्ड पर रोक की सरकारी घोषणा के बाद रुद्रपुर सहित उत्तराखंड के तमाम शहरों में नजूल भूमि पर भूमि धरी अधिकार देने के नाम पर अब तक होती आई वोटो की मर्यादाहीन सियासत भी पूरी तरह एक्सपोज हो गई है। नजूल भूमि को केंद्र में रखकर शहर में अब तक की गई वोटो की गंदी राजनीति की क्रोनोलॉजी पर दृष्टिपात करें ,तो यह तथ्य पूरी तरह साफ हो जाता है कि नजूल भूमि पर भूमि धरी अधिकार देने के नाम पर नजूल भूमि पर बरसों से बसे लोग एक बार नहीं बल्कि बार-बार ठगे गए हैं।भोले भाले गरीब लोगों को नजूल की जमीन पर मालिकाना हक देने का झांसा देकर न केवल शासन प्रशासन ने संगठित प्रयासों के द्वारा वोटो की ठगी की पृष्ठभूमि तैयार की गई, वरन सत्ताधारी दल के उन नेताओं द्वारा भी, जो कि गरीब गुरबा का सबसे बड़ा हितैषी होने का ढोंग करते नहीं थकते, शासन प्रशासन द्वारा प्रायोजित वोटो की इस संगठित ठगी में अपना भरपूर योगदान देकर दोहरे चरित्र का परिचय दिया गया। वह इसलिए, क्योंकि सरकार एवं प्रशासन के साथ-साथ सत्ताधारी दल के सभी छोटे बड़े स्थानीय नेता भी इस तथ्य से भली भांति परिचित थे, कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद उत्तराखंड में स्थित नजूल भूमि पर किसी भी व्यक्ति को वैध भूमि धरी अधिकार नहीं दिया जा सकता, फिर भी शासन प्रशासन सहित सत्ताधारी दल के तमाम राजनेताओं ने नैतिकता को तिलांजलि देते हुए नजूल भूमि का वैध मालिकाना हक निशुल्क देने का भुलावा देकर एक नहीं, बल्कि तीन-तीन चुनाव जीत लिए। लानत तो इस बात पर है कि एक ऐसा वादा ,जो पूरा ही नहीं किया जा सकता था, को शासन प्रशासन एवं सत्ताधारी दल के तमाम राजनेताओं द्वारा पहले विधानसभा चुनाव, फिर लोकसभा और उसके बाद नगर निकाय चुनाव में भी बड़ी बेशर्मी से जनता के सामने प्रचारित प्रसारित किया गया। बताना होगा कि चुनाव के पूर्व जनता को झांसा दे कर वोट लेने के लिए शासन प्रशासन एवं सत्ताधारी दल के राजनेताओं द्वारा बड़े ही सुनियोजित तरीके से न केवल उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के हाथों से नजूल भूमि के मालिकाना हक का पट्ट वितरित कराया गया बल्कि जिला प्रशासन एवं नगर निगम प्रशासन द्वारा शहर के विभिन्न स्थानों में बाकायदा कैंप लगाकर लोगों से नजूल फ्री-होल्ड भूमि संबंधी आवेदन एवं कागजात भी प्राप्त किए गए और तो और, नगर निगम रुद्रपुर के तत्कालीन मेयर, जिन्होंने शहर के लोगों को नजूल भूमि पर मालिकाना हक दिलाने के बाद ही मेयर की कुर्सी पर बैठने का संकल्प लिया था, भी शहर वासियों को भूमि धरी अधिकार देने वाली नई नजूल नीति का प्रचार करते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की उपस्थिति में एक भव्य कार्यक्रम में मेयर की कुर्सी पर विराजमान हो गए। कुल मिलाकर सत्ताधारी दल ने बड़े ही रणनीतिक तरीके से ऐसी माहौल बंदी की, जिससे जनता को यह लगने लगे कि चुनाव के बाद अब नजूल भूमि पर भूमि धरी अधिकार का सपना बस साकार ही होने वाला है। जबकि कड़वी सच्चाई तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित स्पेशल लीव पिटिशन के अंतिम निराकरण के पहले ना तो नजूल भूमि पर मालिकाना हक का सपना पहले ही साकार होने वाला था और ना ही फिलहाल अब कोई आसार हैं। यहां हम अपने पाठकों को याद दिलाना चाहेंगे कि उत्तरांचल दर्पण ने 11 दिसंबर 2024 के अंक में फिर छले गए नजूल भूमि पर बसे लोग शीर्षक से प्रकाशित खबर में ही नजूल भूमि की असल हकीकत और मालिकाना हक संबंधी तमाम पेचीदगियां बयान कर दी थी। इस खबर में हमने यह तथ्य उजागर किया था कि नैनीताल उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2018 में भी एक पीआईएल की सुनवाई के पश्चात नजूल भूमि फ्री-होल्ड नीति पर रोक लगाने के पश्चात राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक एसएलपी दाखिल की थी। एसएलपी पर सुनवाई के पश्चात सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल उच्च न्यायालय द्वारा फ्री-होल्ड नीति पर लगाई गई रोक पर स्टे दे दिया था।उच्च न्यायालय के आदेश पर स्टे मिलने के पश्चात मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने कैबिनेट बैठक में नजूल नीति 2021 पर मोहर लगाकर प्रदेश वासियों को नजूल भूमि को फ्री-होल्ड कराये जाने की कार्यवाही आरंभ कर दी। दिसम्बर 2023 में इसकी अवधि खत्म होने के बाद इसको पुनः एक वर्ष के लिये बढ़ा दिया गया। इसी बीच पीआईएल 159/2020 पर सुनवाई के दौरान 21 फरवरी 2024 को अपना अन्तरिम आदेश देते हुये, नैनीताल उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दे दी ,कि नजूल भूमि फ्री-होल्ड नीति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी संख्या 27862/2018 पर जब तक कोई निर्णय नही आ जाता, तब तक अतिक्रमणकारियों को नजूल भूमि पर कोई भूमिधरी अधिकार न दिया जाये। इस प्रकार नजूल भूमि कोफ्री-होल्ड किए जाने की कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश दिनांक 21 फरवरी 2024 को अस्तित्व में आ चुका था, बावजूद इसके उत्तराखंड में जनता को नजूल भूमि पर मालिकाना हक दिए जाने का झांसा देकर वोट हासिल करने का बेशर्म खेल अभी तक चला आया।
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