विभिन्न विकास कार्यों के लिए वर्ष 2022-23 में 961 हेक्टेयर वन भूमि विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए हस्तांतरित
देहरादून(उद ब्यूरो)। राज्य के मैदानी क्षेत्र से लेकर पहाड़ तक भीषण गर्मी से झुलस रहे हैं और साल दर साल नए कीर्तिमान स्थापित कर रही इस गर्मी से त्रस्त लोग बारिश की दुआएं लगातार मांग रहे हैं। इसमें दो राय नहीं कि प्रदेश में मानसून सक्रिय होते ही पारा धड़ाम हो जाएगा, लेकिन उत्तराखंड में भविष्य की गर्मियां इतनी दुखदाई नहीं होगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। वह इसलिए क्योंकि गर्मी बढ़ने तथा जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरूप सामने आने वाले अन्य प्राकृतिक दुष्परिणामों का सीधा संबंध वन भूमि के कम होने और पेड़ों के काटे जाने से है और उत्तराखंड में वन भूमि सिकुड़ने और वृक्षों के विनाश की रफ्तार बेहद डरावनी है ।एक अनुमान के मुताबिक राज्य में तकरीबन डेढ़ हेक्टेयर वन भूमि रोजाना कम हो रही है । ज्ञात हो की उत्तराखंड में अनियोजित एवं विवेकहीन विकास का रथ पहले से ही काफी तेज दौड़ रहा है। विकास के इस रथ को और भी रफ्रतार देने के लिए सरकार के विभिन्न विभाग अनुभाग तमाम विकास कार्यों के नित नए प्रस्ताव सामने लाते ही रहते हैं। इन प्रस्तावों को धरातल पर अमली जामा पहनने के लिए जमीन की जरूरत होती है। चूंकि उत्तराखंड में जमीन का अधिकांश हिस्सा वन भूमि का ही है ,इसलिए विकास कार्यों की यह गाज अमूमन वन भूमि पर ही गिरती है । बताना होगा कि बीते 5 सालों में ढाई हजार हेक्टेयर से अधिक वन भूमि विकास के विभिन्न प्रयोजनों के लिए हस्तांतरित की जा चुकी है। आंकड़ों पर दृष्टिपात करें ,तो वर्ष 2021-2022 में जहां सबसे अधिक 1138 हेक्टेयर वन भूमि का हस्तांतरण हुआ है, वही वर्ष 2019-20 में 177 वर्ष 2021-22 में 524 तथा वर्ष 2022-23 में 961 हेक्टेयर वन भूमि विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए हस्तांतरित की गई है। हालांकि प्रदेश में वन भूमि को हस्तांतरित किए जाने संबंधी प्रावधान काफी कड़े हैं और वन भूमि हस्तांतरण के प्रस्ताव प्रयोत्तफा एजेंसी के कार्यालय से तैयार होकर डीएफओ कार्यालय नोडल अधिकारी वन भूमि हस्तांतरण से होते हुए पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तक जाते हैं ,जहां से दो स्तर पर अनुमति मिलने के बाद ही वन भूमि मिलने का रास्ता साफ हो पाता है। साथ ही इस प्रक्रिया में कई शर्तों को भी पूरा करना होता है। बावजूद इसके उत्तराखंड में विभिन्न विकास कार्यों के लिए करीब डेढ़ हेक्टेयर वन भूमि बड़ी आसानी से हर दिन हस्तांतरित हो रही है और बीते पांच सालों में मोटा मोटी ढाई हजार हेक्टेयर से अधिक वन भूमि हस्तांतरित हो चुकी है ।बताने की जरूरत नहीं की वन भूमि हस्तांतरण के साथ वृक्षों के कटान की प्रक्रिया भी की जाती है। लिहाजा अगर एक हेक्टेयर भूमि पर कम से कम 150 पेड़ों के काटे जाने का अनुमान भी लगाया जाए, तो बीते पांच सालों में चार लाख से अधिक वृक्ष अब तक काटे जा चुके होंगे। यद्यपि उत्तराखंड में विकास कार्यों के लिए वन भूमि देने की स्थिति में इसके बदले में दो गुनी भूमि लेकर क्षतिपूरक वनीकरण करने तथा प्रयोत्तफा एजेंसी से वन भूमि की नेट प्रेजेंट वैल्यू व क्षतिपूरक वनीकरण के लिए जाने के प्रावधान भी है ,लेकिन राज्य में क्षतिपूरक वनीकरण की हरियाली के दर्शन बमुश्किल ही हो पाते हैं ।जाहिर है की इन हालातो के चलते उत्तराखंड में हर साल बढ़ रही गर्मी का थम पाने के आसार बेहद कम है ।
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