झारखंड से राज्यसभा सदस्य और शराब कारोबारी धीरज साहू और उनके करीबियों के ठिकानों पर आयकर विभाग द्वारा की गई छोपमारी में 300 करोड़ से भी ज्यादा की नगद धनराशि बरामद हुई है। माना जा रहा है कि किसी एक अभियान में अब तक बरामद हुआ यह सबसे अधिक बेहिसाबी धन हैं। यह धन 10 अलमारियों में ठूंसा हुआ था। अभी भी कुछ कमरे और नौ लॉकर खोले जाने बाकी हैं। अतएव धनराशि और भी बढ़ सकती है। इसके पहले कानपुर के इत्र कारोबारी पियूष जैन के ठिकानों से अरबों की काली कमाई मिली थी। इस व्यापारी के पास से 280 करोड़ रुपए नकद, 250 किलो चांदी, 23 किलो सोने की ईंटें बरामद की गई थीं। 6 करोड़ का 600 किलो चंदन और 400 करोड़ की अचल संपत्ति के दस्तावेज भी मिले थे। देश उस समय भी दंग रह गया था, जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार के मंत्री पार्थ चटर्जी की महिला मित्र के यहां से 50 करोड़ रुपए नगद बरामद किए गए थे। उन्होंने यह धन शिक्षकों की भर्ती में धांधली करके जुटाया था। ममता ने तो नैतिकता का पालन करते हुए पार्थ को मंत्री पद से हटा दिया था, लेकिन कांग्रेस ने धीरज साहू को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। इसके उलट धीरज को बड़ा और पुश्तैनी उद्योगपति बताकर उनका बचाव किया जा रहा है। झारखंड की ही आईएएस पूजा सिंघल के करीबी के यहां से प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने नगद 17 करोड़ रुपए बरामद किए थे। पूजा खनिज विभाग से जुड़ी थीं। इससे जाहिर होता है कि अधिकारी, ठेकेदार और नेताओं का गठजोड़ बड़े पैमाने पर गोरखधंधों में लिप्त हैं। आखिर काले धन के ये कुबेर रातों रात इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा करने में कैसे सफल हो रहे हैं। यह सवाल तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब अनेक कानून ऐसे बना दिए गए हैं, जिनके चलते काली कमाई सिर्जित ही न होने पाए ? कालेधन की महिमा अपरंपार है। इसे देश में ही रोकने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने कई नए कानून बनाए और नोटबंदी भी की, लेकिन नतीजा शून्य रहा। उल्लू पर सवार लक्ष्मी के विदेश में ठिकाने अभी भी बने हुए हैं।यह देश की कानून और अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का सबब है। स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक द्वारा जारी सालाना रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक भारतीयों का निजी एवं कंपनियों का धन स्विस बैंकों में साल 2020 में बढ़कर करीब 20,700 करोड़ रुपए हो गया है। यह धन स्विस बैंकों की भारतीय शाखाओं और अन्य वित्तीय संस्थानों के जरिए पहुंचाया गया। स्विस नेशनल बैंक के अनुसार यह धन 2019 की तुलना में 3.12 गुना ज्यादा है। राजग सरकार सत्ता में आई है तब से लगातार यह दावा करती रही है कि विदेशों में जमा काला धन देश में वापस लाने और देश के भीतर कालाधन पैदा न हो इस मकसद पूर्ति के लिए ठोस व कारगर कोशिशें की गई हैं। बावजूद न तो कालाधन वापस आया और न ही नया कालाधन बनने से रुक पाया। हालांकि राजग सरकार ने कालाधन पर अंकुश लगे, इस दृष्टि से ऐसे कानूनी उपाय जरूर किए हैं, जो कालेधन के उत्सर्जन पर अंकुश लगाने वाले हैं। लेकिन स्विस बैंक द्वारा जारी आंकड़ों और धीरज साहू और पियूष जैन के ठिकानों से मिले कालाधन ने साफ कर दिया है कि ये उपाय महज हाथी के दांत हैं। हालांकि मोदी सरकार ने कालेधन पर अंकुश के लिए ‘कालाधन अघोषित विदेशी आय एवं जायदाद और आस्ति विधेयक-2015‘ और कालाधन उत्सर्जित ही न हो, इस हेतु ‘बेनामी लेनदेन निषेध विधेयक अस्तित्व में ला दिए हैं। ये दोनों विधेयक इसलिए एक दूसरे के पूरक माने जा रहे थे, क्योंकि एक तो आय से अधिक काली कमाई देश में पैदा करने के स्रोत उपलब्ध हैं, दूसरे इस कमाई को सुरक्षित रखने की सुविधा विदेशी बैंकों में हासिल है। लिहाजा कालाधन फल फूल रहा है। दोनों कानून एक साथ वजूद में आने से यह उम्मीद जगी थी कि कालेधन पर कालांतर में लगाम लगेगी, लेकिन नतीजा ढांक के तीन पात रहा। सरकार ने कालाधन अघोषित विदेशी आय एवं जायदाद और कर आरोपण-2015 कानून बनाकर कालाधन रखने के प्रति उदारता दिखाई थी। इसमें विदेशों में जमा अघोषित संपत्ति को सार्वजानिक करने और उसे देश में वापस लाने के कानूनी प्रावधान हैं। दरअसल कालेधन के जो कुबेर राष्ट्र की संपत्ति राष्ट्र में लाकर बेदाग बचे रहना चाहते हैं, उनके लिए अघोषित संपत्ति देश में लाने के दो उपाय सुझाए गए हैं। वे संपत्ति की घोषणा करें और फिर 30 फीसदी कर व 30 फीसदी जुर्माना भर कर शेष राशि का वैध धन के रूप में इस्तेमाल करें। इस कानून में प्रावधान है कि विदेशी आय में कर चोरी प्रमाणित हाती है तो 3 से 10 साल की सजा के साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसी प्रकृति का अपराध दोबारा करने पर तीन से 10 साल की कैद के साथ 25 लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक का अर्थ-दण्ड लगाया जा सकता है। जाहिर है,कालाधन घोषित करने की यह कोई सरकारी योजना नहीं थी। अलबत्ता अज्ञात विदेशी धन पर कर व जुर्माना लगाने की ऐसी सुविधा थी, जिसे चुका कर व्यक्ति सफेदपोष बना रह सकता है। ऐसा ही उपाय प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने देशी कालेधन पर 30 प्रतिशत जुर्माना लगाकर सफेद करने की सुविधा दी थी। इस कारण सरकार को करोड़ों रुपए बतौर जुर्माना मिल गए थे अरबों रुपए सफेद धन के रूप में तब्दील होकर देश की अर्थव्यस्था मजबूत करने के काम आए थे। कालाधन उत्सर्जित न हो, इस हेतु दूसरा कानून बेनामी लेनदेन पर लगाम लगाने के लिए लाया गया था। इस संषोधित विधेयक में बेनामी संपत्ति की जब्ती और जुर्माने से लेकर जेल की हवा खाने तक का प्रावधान है। साफ है,यह कानून देश में हो रहे कालेधन के सृजन और संग्रह पर अंकुश लगाने के लिए हैं, लेकिन ठीक से अमल नहीं हो पा रहा है। अभी तक देश में यह साफ नहीं है, कि आखिरकार कालाधन बनता कैसे है ? अर्थशास्त्र में भी इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा निर्धारित नहीं है। कुछ अर्थशास्त्री इसे समानांतर अर्थव्यवस्था के नाम से जानते हैं, तो कुछ इसे काली या अवैध कमाई का हिस्सा मानते है। वैसे कालाधन वह राशि होती है, जो लेखे- जोखे और आयकर से बाहर रख ली जाती है। सरकारी अधिकारी, कर्मचारी इसे भ्रष्टाचार के जरिए सृजित करते हैं। इस राशि को स्विस बैंकों में तो जमा किया ही जाता है, अलबत्ता देश में इसे मनोरंजन, भोग-विलास, सट्टðेबाजी, चल-अचल संपत्ति की खरीद-फरोक्त, सोने-चांदी की खरीद, चुनावों में वित्त-पोषण और पेड न्यूज में भी खर्च किया जाता है। देशी- विदेशी पर्यटन, महंगी और विदेशी शिक्षा व इलाज में भी इस राशि का खूब इस्तेमाल हो रहा है। गोया, भ्रष्टाचार और अपराध इसी के सह-उत्पादों के रूप में सामने आ रहे हैं। गुलाबी अर्थव्यवस्था के पैरोकार इसे ही समानांतर अर्थव्यवस्था मानते हुए, इसे बने रहने की दलीलंा देते रहते हैं, जबकि यह धनराशि कल्याणकारी योजनाओं को पलीता लगाने के साथ नागरिकों के बीच आर्थिक विसंगति बढ़ाने का काम कर रही है। अतएव कालेधन के उत्सर्जन पर प्रतिबंध हर हाल में लगना ही चाहिए ?
प्रमोद भार्गव,लेखक/पत्रकार
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